Monday 30 July 2012


स्मरण आणि विस्मरण

अगदी हौशीने बनवलेल्या  plastic canvas च्या magazine holder मध्ये, कधी तरी उपयोगी पडतील म्हणून कोंबून ठेवलेल्या "Friday Magazines" चा साठा, न उचलण्याइतका जड झाल्यावर, मी मनाशी ठाम मांडून रिकामा करावयाचा ठरवला. त्या मध्ये , १५ जूनचा "The Views" या section चा पेपर  मिळाला. कशासाठी हा पेपर मी जपून ठेवला असेन, ह्या विचारात, तो पेपर मी किमान दहा वेळा तरी चाळला असेन, परंतु मला एक कणमात्र सुद्धा, माझ्या स्वताच्या ह्या मागील उद्देशाची आठवण होईना. हताश होवून मी तो पेपर शेवटी फेकून दिला. हे करत असतांना, श्री. गोंदवलेकर महाराजांनी सांगितलेल्या एका गोष्टीची मला सातत्याने जाणीव झाली. ती  म्हणजे, आपल्याला ज्या गोष्टी आवडतात त्यांचे आपल्याला स्मरण राहते आणि याच्या उलट, ज्या आवडत नाहीत त्यांचे आपोआप विस्मरण होते. आवडत असलेल्या गोष्टीत आपण नकळत एकाग्र होतो. आपल्याला विषयाची आवड असते म्हणून विषयांचे सेवन करताना आपण "एकाग्र" होतो; मग विषयाच्या ऐवजी आपण भगवंताची / परमात्म्याची आवड धरली तर त्याच्या ठिकाणी एकाग्र होता येणार नाहीं का? भगवंता बद्दलचे आपले विस्मरण हेच याला कारणीभूत असावे. "प्रपंच  तातडीचा आणि परमार्थ मात्र सवडीचा" हे असे आपण का करतो?  भगवंताच्या स्मरणात केलेले कोणतेही कर्म "सत्कर्म" या सदरेत पडते, हे का आपल्या लक्षात येत नाहीं ? १५ जूनचा पेपरामध्ये नक्कीच काही तरी वाचण्यासारखे होते, परंतु त्याचे मला विस्मरण झाले होते. का अशा गोष्टी माझ्या लक्षात राहत नाहीत? आता पुढे अशी चूक पुन्हा घडणार नाहीं, असे मनाला बजावून सांगितल्यावर जरा बरे वाटले.           


सर्वांचा आवडता पवित्र असा श्रावण महिना सुरु आहे. श्रावण महिन्याचे विशेष महत्व बारा ज्योतिर्लिंगामुळे आहे. त्यापैकि दोन  ज्योतिर्लिंगाचं आपण दर्शन घेतलच आणि त्याबाबतची सविस्तर माहिती देखिल वाचली. आज आपण तिसरे  ज्योतिर्लिंग आणि त्याबाबतची सविस्तर माहिती जाणुन घेऊया. ही  माहिती हिंदि भाषेत आहे.



३) महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग: - 
बारा ज्योतिर्लिंग में तिसरा ज्योतिर्लिंग है श्री महाकालेश्वर । उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर एक विशाल परिसर में स्थित है, जहाँ कई देवी-देवताओं के छोटे-बड़े मंदिर हैं। मंदिर में प्रवेश करने के लिए मुख्य द्वार से गर्भगृह तक की दूरी तय करनी पड़ती है। इस मार्ग में कई सारे पक्के चढ़ाव उतरने पड़ते हैं परंतु चौड़ा मार्ग होने से यात्रियों को दर्शनार्थियों को अधिक ‍परेशानियाँ नहीं आती है। गर्भगृह में प्रवेश करने के लिए पक्की सीढ़ियाँ बनी हैं। मंदिर परिसर में एक प्राचीन कुंड है। वर्तमान में जो महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग है वह तीन खंडों में विभाजित है। निचले खंड में महाकालेश्वर, मध्य के खंड में ओंकारेश्वर तथा ऊपरी खंड में श्री नागचंद्रेश्वर मंदिर स्थित है। गर्भगृह में विराजित भगवान महाकालेश्वर का विशाल दक्षिणमुखी शिवलिंग है, ज्योतिष में जिसका विशेष महत्व है। 

इसी के साथ ही गर्भगृह में माता पार्वती, भगवान गणेश व कार्तिकेय की मोहक प्रतिमाएँ हैं। गर्भगृह में नंदी दीप स्थापित है, जो सदैव प्रज्ज्वलित होता रहता है। गर्भगृह के सामने विशाल कक्ष में नंदी की प्रतिमा विराजित है। इस कक्ष में बैठकर हजारों श्रद्धालु शिव आराधना का पुण्य लाभ लेते हैं।

मुख्य आकर्षण : -
महाकालेश्वर मंदिर के मुख्य आकर्षणों में भगवान महाकाल की भस्म आरती, नागचंद्रेश्वर मंदिर, भगवान महाकाल की शाही सवारी आदि है। प्रतिदिन अलसुबह होने वाली भगवान की भस्म आरती के लिए कई महीनों पहले से ही बुकिंग होती है। इस आरती की खासियत यह है कि इसमें ताजा मुर्दे की भस्म से भगवान महाकाल का श्रृंगार किया जाता है लेकिन आजकल इसका स्थान गोबर के कंडे की भस्म का उपयोग किया जाता है परंतु आज भी यही कहा जाता है कि यदि आपने महाकाल की भस्म आरती नहीं देखी तो आपका महाकालेश्वर दर्शन अधूरा है।
प्रति बारह वर्ष में पड़ने वाला कुंभ मेला यहाँ का सबसे बड़ा मेला है, जिसमें देश-विदेश से आए साधु-संतों व श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है। महाकालेश्वर मंदिर के ऊपरी तल पर स्थित प्राचीन व चमत्कारी नागचंद्रेश्वर मंदिर वर्ष में एक बार केवल नागपंचमी को ही श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोला जाता है। यहाँ हर वर्ष श्रावण मास में भगवान महाकाल की शाही सवारी निकाली जाती हैं।
हर सोमवती अमावस्या पर उज्जैन में श्रद्धालु पुण्य सलिला शिप्रा स्नान के लिए पधारते हैं। फाल्गुनकृष्ण पक्ष की पंचमी से लेकर महाशिवरात्रि तक तथा नवरात्रि महोत्सव पर यहाँ महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के विशेष दर्शन, पूजन व रूद्राभिषेक होता है।

यहाँ का सिंहस्थ मेला : -
सिंहस्थ मेले के बारे में यह कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन के पश्चात देवता अमृत कलश को दानवों से बचाने के लिए वहाँ से पलायन कर रहे थे, तब उनके हाथों में पकड़े अमृत कलश से अमृत की बूँद धरती पर जहाँ-जहाँ भी गिरी थी, वो स्थान पवित्र तीर्थ बन गए। उन्हीं स्थानों में से एक उज्जैन है। यहाँ प्रति बारह वर्ष में सिंहस्थ मेला आयोजित होता है। 
उज्जैन का सिंहस्थ मेला बहुत ही दुर्लभ संयोग लेकर आता है इसलिए इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। इस दिन यहाँ दस दुर्लभ योग होते हैं, जैसे : वैशाख माह, मेष राशि पर सूर्य, सिंह पर बृहस्पति, स्वाति नक्षत्र, शुक्ल पक्ष, पूर्णिमा आदि।
।। ॐ नमः शिवाय ।।

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