Sunday 12 August 2012

अशिक्षित शिक्षित


परवा कुठे तरी वर दाखविलेलं, वाचायला मिळालं. वाचल्यानंतर मन एकदम खिन्न झालं. हे जे लिहील आहे ते गम्मत म्हणून कि उपाहास म्हणून, हे मला अजूनपर्यंत तरी  कळले नाहीं.  आणि कळवून घेण्याची तशी इच्छा पण नाहीं. आता बघा, ह्यांचा मुलगा नासा मध्ये कामाला आहे म्हणजे तो कमीत कमी अमेरिकेच्या उत्तम महाविद्यालयातून नक्कीच M.S. झालेला असणार. ह्या वर जर त्याच्या घरातलं वातावरणेचे मोजमाप केले तर, कुटुंब एकदम सुशिक्षित असायला हवे आणि त्याप्रमाणे त्यांचे विचारही तसेच उदार आणि उदात्त असायला हवेत. हे कुटुंब नक्कीच रूढी, रीतीरिवाज, जुने संस्कार ह्याच्यात जरी विश्वास ठेवत असले तरी, सामान्यतः ते अग्रवर्ती विचाराचे असायला हवेत. त्यांना मंगळ असलेली मुलगी नक्कीच चालू शकेल कारण त्यांना "कुंडली मध्ये मंगळ आहे म्हणजे काय" ह्याचा नक्कीच अभ्यास असला पाहिजे. बरोबर आहे ना? परंतु, प्रत्यक्षात हे सर्व धांदात खोटे आहे. माझ्या स्वानुभवावरून हे मी सांगत आहे. स्वतःला highly educated & advanced म्हणून घेणारी ही सर्व मंडळी खोटा मुखवटा घालून समाजात फुकटचा मान मिळवून मान अगदी वर करून फिरत असतात. आपण जर अशा लोकांच्या कडे खरोखरच मंगळ असलेली मुलगी घेवून गेलो तर, अगदी दुसऱ्या दिवशीच त्यांचे तुम्हाला उत्तर येईल, "We can not accept your expression of interest as both the horoscopes are not matching." अलीकडे एका कुटुंबाने तर हद्दच केली. प्रथम त्यांनी त्यांच्या मुलाच्या प्रोफाईल वर लिहिले होते कि, "Kuj Dosham : Yes, Horoscope match not required". मुलगा चांगला शिकलेला होता. त्याचा कुंडलीत सुद्धा मंगळ दोष आहे हे दिले होते. सहज म्हणून आमच्या मुलीची कुंडली आणि फोटो त्यांना पाठवले. बरेच दिवस त्यांचे उत्तर आले नाहीं म्हणून मी परत एकदा त्या matrimonial site वर जावून बघितले, तर काय आश्चर्य, त्यांनी दिलेल्या माहितीत बदल करून खाली टिपणी दिली होती कि, " Earlier given time of birth is wrong. Now corrected. Kuj Dosham : No, Horoscope match : Required." काय हा बदमाशपणा..!! एकूण काय, प्रथम असल्या लोकांना, कुंडलीत मंगळ असणे म्हणजे काय हे माहित नाहीं, ते समजावून घेण्याची ह्यांची लायकी नाहीं, स्वतःच्या उच्च शिक्षणाचा उपयोग कसा आणि कधी करावा हे समजावून घेण्यासाठी ते कधी बुद्धी वापरत नाहींत....तर मग अशा "अशिक्षित शिक्षित " लोकांच्या घरी आपली मुलगी न दिलेलीच बरी !!!!      

श्रावण मास के चलते, हम सभी श्री गणेशभक्तोंनो अभीतक सात ज्योतिर्लिंगो का दर्शन किया । आज है आठवां ज्योतिर्लिंग, श्री त्र्यंबकेश्वर । 

८) त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग : - 
त्र्यंबकेश्वर ज्यो्तिर्लिंग में ब्रह्मा, विष्णुस और महेश तीनों ही विराजि
त हैं । यही इस ज्योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता है। अन्य सभी ज्योतिर्लिंगों में केवल भगवान शिव ही विराजित हैं।

निर्माण :-
गोदावरी नदी के किनारे स्थित त्र्यंबकेश्वजर मंदिर काले पत्थेरों से बना है। मंदिर का स्थािपत्यी अद्भुत है। इस मंदिर के पंचक्रोशी में कालसर्प शांति, त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबलि की पूजा संपन्नत होती है। जिन्हें भक्तयजन अलग-अलग मुराद पूरी होने के लिए करवाते हैं।
इस प्राचीन मंदिर का पुनर्निर्माण तीसरे पेशवा बालाजी अर्थात नाना साहब पेशवा ने करवाया था। इस मंदिर का जीर्णोद्धार १७५५ में शुरू हुआ था और ३१ साल के लंबे समय के बाद १७८६ में जाकर पूरा हुआ। कहा जाता है कि इस भव्य मंदिर के निर्माण में करीब १६ लाख रुपए खर्च किए गए थे, जो उस समय काफी बड़ी रकम मानी जाती थी।

मंदिर : - 
गाँव के अंदर कुछ दूर पैदल चलने के बाद मंदिर का मुख्य द्वार नजर आने लगता है। त्र्यंबकेश्वर मंदिर की भव्य इमारत सिंधु-आर्य शैली का उत्कृष्ट नमूना है। मंदिर के अंदर गर्भगृह में प्रवेश करने के बाद शिवलिंग की केवल आर्घा दिखाई देती है, लिंग नहीं। गौर से देखने पर आर्घा के अंदर एक-एक इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं। इन लिंगों को त्रिदेव- ब्रह्मा-विष्णु और महेश का अवतार माना जाता है। भोर के समय होने वाली पूजा के बाद इस आर्घा पर चाँदी का पंचमुखी मुकुट चढ़ा दिया जाता है।

स्थिति:-
त्र्यंबकेश्वर मंदिर और गाँव ब्रह्मगिरि नामक पहाड़ी की तलझटी में स्थित है। इस गिरि को शिव का साक्षात रूप माना जाता है। इसी पर्वत पर पवित्र गोदावरी नदी का उद्गमस्थल है। तीन नेत्रों वाले शिवशंभु के यहाँ विराजमान होने के कारण इस जगह को त्र्यंबक (तीन नेत्रों वाले) कहा जाने लगा। उज्जैन और ओंकारेश्वर की ही तरह त्र्यंबकेश्वर महाराज को इस गाँव का राजा माना जाता है, इसलिए हर सोमवार को त्र्यंबकेश्वर के राजा अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं।

पौराणिक कथा : -
इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना के विषय में शिवपुराण में यह कथा वर्णित है- एक बार महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाले ब्राह्मणों की पत्नियाँ किसी बात पर उनकी पत्नी अहिल्या से नाराज हो गईं। उन्होंने अपने पतियों को ऋषि गौतम का अपकार करने के लिए प्रेरित किया। उन ब्राह्मणों ने इसके निमित्त भगवान्‌ श्रीगणेशजी की आराधना की।
उनकी आाधना से प्रसन्न हो गणेशजी ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा उन ब्राह्मणों ने कहा- 'प्रभो! यदि आप हम पर प्रसन्न हैं तो किसी प्रकार ऋषि गौतम को इस आश्रम से बाहर निकाल दें।' उनकी यह बात सुनकर गणेशजी ने उन्हें ऐसा वर माँगने के लिए समझाया। किंतु वे अपने आग्रह पर अटल रहे।
अंततः गणेशजी को विवश होकर उकी बात माननी पड़ी। अपने भक्तों का मन रखने के लिए वे एक दुर्बल गाय का रूप धारण करके ऋषि गौतम के खेत में जाकर रहने लगे। गाय को फसल चरते देखकर ऋषि बड़ी नरमी के साथ हाथ में तृण लेकर उसे हाँकने के लिए लपके। उन तृणों का स्पर्श होते ही वह गाय वहीं मरकर गिर पड़ी। अब तो बड़ा हाहाकार मचा। सारे ब्राह्मण एकत्र हो गो-हत्यारा कहकर ऋषि गौतम की भर्त्सना करने लगे। ऋषि गौतम इस घटना से बहुत आश्चर्यचकित और दुःखी थे। अब उन सारे ब्राह्मणों ने कहा कि तुम्हें यह आश्रम छोड़कर अन्यत्र कहीं दूर चले जाना चाहिए। गो-हत्यारे के निकट रहने से हमें भी पाप लगेगा। विवश होकर ऋषि गौतम अपनी पत्नी अहिल्या के साथ वहाँ से एक कोस दूर जाकर रहने लगे। किंतु उन ब्राह्मणों ने वहाँ भी उनका रहना दूभर कर दिया। वे कहने लगे- 'गो-हत्या के कारण तुम्हें अब वेद-पाठ और यज्ञादि के कार्य करने का कोई अधिकार नहीं रह गया।' अत्यंत अनुनय भाव से ऋषि गौतम ने उन ब्राह्मणों से प्रार्थना की कि आप लोग मेरे प्रायश्चित और उद्धार का कोई उपाय बताएँ। तब उन्होंने कहा- 'गौतम! तुम अपने पाप को सर्वत्र सबको बताते हुए तीन बार पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करो। फिर लौटकर यहाँ एक महीने तक व्रत करो। इसके बाद 'ब्रह्मगिरी' की १०१ परिक्रमा करने के बाद तुम्हारी शुद्धि होगी अथवा यहाँ गंगाजी को लाकर उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंगों से शिवजी की आराधना करो। इसके बाद पुनः गंगाजी में स्नान करके इस ब्रह्मगरी की ११ बार परिक्रमा करो। फिर सौ घड़ों के पवित्र जल से पार्थिव शिवलिंगों को स्नान कराने से तुम्हारा उद्धार होगा। ब्राह्मणों के कथनानुसार महर्षि गौतम वे सारे कार्य पूरे करके पत्नी के साथ पूर्णतः तल्लीन होकर भगवान्‌ शिव की आराधना करने लगे। इससे प्रसन्न हो भगवान्‌ शिव ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा। महर्षि गौतम ने उनसे कहा- 'भगवान्‌ मैं यही चाहता हूँ कि आप मुझे गो-हत्या के पाप से मुक्त कर दें।' भगवान्‌ शिव ने कहा- 'गौतम ! तुम सर्वथा निष्पाप हो। गो-हत्या का अपराध तुम पर छलपूर्वक लगाया गया था। छलपूर्वक ऐसा करवाने वाले तुम्हारे आश्रम के ब्राह्मणों को मैं दण्ड देना चाहता हूँ।' इस पर महर्षि गौतम ने कहा कि प्रभु! उन्हीं के निमित्त से तो मुझे आपका दर्शन प्राप्त हुआ है। अब उन्हें मेरा परमहित समझकर उन पर आप क्रोध न करें।' बहुत से ऋषियों, मुनियों और देवगणों ने वहाँ एकत्र हो गौतम की बात का अनुमोदन करते हुए भगवान्‌ शिव से सदा वहाँ निवास करने की प्रार्थना की। वे उनकी बात मानकर वहाँ त्र्यम्ब ज्योतिर्लिंग के नाम से स्थित हो गए। गौतमजी द्वारा लाई गई गंगाजी भी वहाँ पास में गोदावरी नाम से प्रवाहित होने लगीं। यह ज्योतिर्लिंग समस्त पुण्यों को प्रदान करने वाला है। ।। ॐ नमः शिवाय ।।

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