म्हातारपण आणि वृद्धाश्रम
समुद्र किनाऱ्यावर छोटे बहिण भाऊ वाळूचं घर बनवण्यात मग्न होते..
"थांब दादा असं नाही... इथे आपण गाडी ठेवायची.."
त्यांचा खेळ कल्पना पाहताना त्यांच्या आईला फार बर वाटत होत...
"आई बघ हं,, ही रूम माझी,, ही ताई ची,, आणि ही तुझी.. किती छान आहे ना आपलं घर...??.."
आपण बनवलेलं घर आपल्या आईला कौतुकाने दाखवत मुलगा म्हणाला..
इतक्यात त्याचे बाबा मुलांसाठी आईस क्रीम घेऊन आले,, आणि विचारल "आणि माझी रूम रे..?? मी कुठे राहायचं..??"
निरागसपणे त्या छोट्या जीवांनी उत्तर दिलं, "बाबा तुम्हाला कशाला हवीये रूम..??
तुम्ही कसं आजोबांना वृद्धाश्रमात पाठवलंत,, आम्ही पण तुम्हाला पाठवणार..
बाबा म्हातारे झाले कि त्यांना वृद्धाश्रमात पाठवतात ना..??.."
हे ऐकून त्या बापाला आपल्या केलेल्या कर्माची फळ दिसू लागली....
विचार चक्र जोरात फिरू लागलं...
'हे आपण काय शिकवलं..??'
विचार चक्राची गती वाढत गेली आणि तो बाप चक्कर येऊन तिथेच थंड पडला.......
म्हणतात ना, आपण जसं पेरतो अगदी तसंच उगवत. म्हणून पेरतानाच काळजी घेतलेली बरी !!!
७) विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग : - विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के १२ ज्योतिर्लिंगो में से एक ज्योतिर्लिंग है. यह ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश के काशी नामक स्थान में है. काशी सभी धर्म स्थलों में सबसे अधिक महत्व रखती है. सभी धर्म स्थलों में काशी का अत्यधिक महत्व कहा गया है. इस स्थान की मान्यता है, कि यह स्थान सदैव बना रहेगा. अगर कभी इस पृ्थ्वी पर किसी तरह की कोई प्रलय आती भी है, तो इसकी रक्षा के लिए भगवान शिव इस स्थान को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेगें. और प्रलय के टल जाने पर काशी को इसके स्थान पर रख देगें.
काशी मोक्ष नगरी : धर्म शास्त्रों के अनुसार सृष्टि का प्रारम्भ भी इसी स्थान को कहा गया है. इस स्थान के विषय में एक पौराणिक कथा प्रसिद्ध है, कि सृ्ष्टि रचना के लिए भगवान शिव की उपासना इसी स्थान पर श्री विष्णु जी ने की थी. इसके अतिरिक्त ऋषि अगस्त्य ने इसी स्थान पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उपासना की थी. इस नगरी से कई मान्यताएं जुडी हुई है. काशी धर्म स्थल के विषय में कहा जाता है, कि इस स्थान पर जो भी व्यक्ति अंतिम सांस लेता है. उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस स्थान की महिमा के विषय में जितना कहा जाए कम है. कहा जाता है. कि यहां मृ्त्यु को प्राप्त करने वाले व्यक्ति को भगवान शंकर मृ्त्युधारक के कान में मोक्ष प्राप्ति का उपदेश देते है. इस मंत्र को सुनने मात्र से पापी से पापी व्यक्ति भी भवसागर को पार कर श्री विष्णु लोक में जाता है. अधर्मी और अनाचारी भी यहां मृ्त्यु होने के बाद संसार के बंधनों से मुक्त हो गए है. प्राचीन धर्म शास्त्र मत्स्य पुराण के अनुसार काशी नगरी जप, ध्यान की नगरी है. यहां आकर व्यक्ति को उसके दु:खों से मुक्ति मिलती है. इसी पवित्र नगरी में विश्वनाथ मंदिर ज्योतिर्लिंग स्थित है. इस ज्योतिर्लिंग को विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से भी जाना जाता है. मणिककर्णिका, दशाश्वमेध, लोलार्क, बिंदूमाधव और केशवश्री विश्वनाथ धाम में ही पांच प्रमुख तीर्थ है. इसमे दशाश्वमेध, लोलार्क, बिंदूमाधव, केशव और मणिकर्णिका है. एक स्थान पर ही पांच धर्म स्थल होने के कारण इस स्थान को परमगति देने वाला स्थान कहा गया है. श्री विश्वनाथ धाम की महत्वता इसके साथ स्थित अन्य पांच तीर्थ स्थल भी बढाते है.
विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग कथा : विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के संबन्ध में एक पौराणिक कथा प्रचलित है. बात उस समय की है जब भगवान शंकर पार्वती जी से विवाह करने के बाद कैलाश पर्वत पर ही रहते थें. परन्तु पार्वती जी को यह बात अखरती थी कि, विवाह के बाद भी उन्हें अपने पिता के घर में ही रहना पडे़. इस दिन अपने मन की यह इच्छा देवी पार्वती जी ने भगवान शिव के सम्मुख रख दी. अपनी प्रिया की यह बात सुनकर भगवान शिव कैलाश पर्वत को छोड कर देवी पार्वती के साथ काशी नगरी में आकर रहने लगे. और काशी नगरी में आने के बाद भगवान शिव यहां ज्योतिर्लिंग के रुप में स्थापित हो गए. तभी से काशी नगरी में विश्वनाथ ज्योतिर्लिग ही भगवान शिव का निवास स्थान बन गया है.
विश्वनाथ ज्योतिर्लिग महत्व : काशी नगरी की वि़शेषता विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के कारण ही आज अन्य सभी धर्म स्थलों में सबसे अधिक है. जो जन इस नगरी में आकर भगवान शिव का पूजन और दर्शन करता है. उसे उसके समस्त पापों से मुक्ति मिलती है. भगवान शिव अपने भक्त की सभी पापों को स्वयं वहन करते है. और श्रद्वालु को सुख और कामना पूर्ति का आशिर्वाद देते है. भगवान शिव की नगरी कही जाने वाली काशी में स्थित पांच अन्य तीर्थ स्थल भी है. फिर भी भगवान शिव को परम सत्य, सुन्दर और परमात्मा कहा गया है. भगवान शिव सत्यम शिवम और सुंदरम है. वे ही सत्य है. वे ही ब्रह्मा है, और शिव ही शुभ होकर आत्मा के कारक है. इस जीवन में भगवान शिव और देवी पार्वती के अलावा कुछ भी अन्य जानने योग्य नहीं है. शिव ही आदि और शिव ही इस सृ्ष्टि का अंत है. जो भगवान शिव की शरण में नहीं जाता है, वह पाप और दु:ख में डूबता जाता है. ।। ॐ नमः शिवाय ।।
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