Monday 6 August 2012

सुख आणि दुःख

अकबर ने बीरबल से ऐसा लिखने को कहा जिसे ख़ुशी में पढो तो गम हो और गम में पढो तो ख़ुशी हो. 
बीरबल ने लिखा 
"ये वक्त गुजर जायेगा"

हे वाचल्या बरोब्बर वाटले कि बीरबलाला कसे अगदी अचूक माहित होते सर्व !! क्षणभर त्याच्या बुद्धीचे कौतुक करावेसे वाटले. परंतू, खोलात शिरून , ह्या वाक्याचा अर्थ समजावून घेण्याचा प्रयन्त केल्यावर लक्षात आले कि, बीरबल ने जे काही सांगितले ते फक्त व्यावहारिक जीवनाला लागू पडणारे आहे. त्याने बहुधा तात्विक दृष्टीकोनातून ह्यावर विचार केला नव्हता. सुख आणि दुःख, ये वक्त गुजर जायेगा.....ह्या सर्व गोष्टी फक्त बद्ध देहाला लागू आहेत. हा  बद्ध देह फक्त दृश्य गोष्टी जणू शकतो. परंतु, ह्या दृश्य गोष्टी पलीकडे जे अदृश्य आहे, तिथे आत्मा / चैतन्य / प्राण / परमात्मा / ब्रम्ह याची निरंतर सत्चीतानंद अवस्थे मध्ये वसती आहे. त्यांना या सुख, दुःख, वक्त वगैरे क्षणभंगुर अशा उपाधींची बाधा नसते. अशा या परमानंद अवस्थेत, बीरबल च्या ह्या हजरजवाबी उत्तराला, खरोखरच काही मूल्य आहे काय?     

आज तिसरा श्रावणी सोमवार .... पवित्र श्रावण मास के चलते हमने आजतक बारा ज्योतिर्लिंगो में से पांच पवित्र ज्योतिर्लिंगोंका दर्शन किया ।आज सोमवार के पवित्र दिन भी हम सभी श्री गणेशभक्त ज्योतिर्लिंगो में से छंटवां ज्योतिर्लिंग भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करेंगे । 

६) भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग : -

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पूणे जिले में सहाद्रि नामक पर्वत पर स्थित है. इस मंदिर की गणना भारत के बारा ज्योतिर्लिंगों में की जाती है. पास में ही बहती भीमा नदी इसके सौन्दर्य को बढाती है. इसके अतिरिक्त यहां बहने वाली एक अन्य नदी कृ्ष्णा नदी है. दो पवित्र नदियों के निकट बहने से इस स्थान की महत्वत्ता ओर भी बढ जाती है. महाशिवरात्री या प्रत्येक माह में आने वाली शिवरात्री में यहां पहुंचने के लिए विशेष बसों का प्रबन्ध किया जाता है. 

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का वर्णन शिवपुराण में मिलता है. शिवपुराण में कहा गया है, कि पुराने समय में भीम नाम का एक राक्षस था. वह राक्षस कुंभकर्ण का पुत्र था. परन्तु उसका जन्म ठिक उसके पिता की मृ्त्यु के बाद हुआ था. अपनी पिता की मृ्त्यु भगवान राम के हाथों होने की घटना की उसे जानकारी नहीं थी. समय बीतने के साथ जब उसे अपनी माता से इस घटना की जानकारी हुई तो वह श्री भगवान राम का वध करने के लिए आतुर हो गया. अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए उसने अनेक वर्षों तक कठोर तपस्या की. उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे ब्रह्मा जी ने विजयी होने का वरदान दिया. वरदान पाने के बाद राक्षस निरंकुश हो गया. उससे मनुष्यों के साथ साथ देवी देवता भी भयभीत रहने लगे. धीरे-धीरे सभी जगह उसके आंतक की चर्चा होने लगी. युद्ध में उसने देवताओं को भी परास्त करना प्रारम्भ कर दिया. जहां वह जाता मृ्त्यु का तांडव होने लगता. उसने सभी और पूजा पाठ बन्द करवा दिए. अत्यन्त परेशान होने के बाद सभी देव भगवान शिव की शरण में गए. भगवान शिव ने सभी को आश्वासन दिलाया की वे इस का उपाय निकालेगें. भगवान शिव ने राक्षस को नष्ट कर दिया. भगवान शिव से सभी देवों ने आग्रह किया कि वे इसी स्थान पर शिवलिंग के रुप में विराजित हो़. उनकी इस प्रार्थना को भगवान शिव ने स्वीकार किया. और वे भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रुप में आज भी यहां विराजित है.

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग को मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है. धर्म पुराणों में भी इस ज्योतिर्लिंग का वर्णन मिलता है. इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से व्यक्ति को समस्त दु:खों से छुटकारा मिलता है. इस मंदिर के विषय में यह मान्यता है, कि जो भक्त श्रद्धा से इस मंदिर के प्रतिदिन सुबह सूर्य निकलने के बाद दर्शन करता है, उसके सात जन्मों के पाप दूर होते है. तथा उसके लिए स्वर्ग के मार्ग स्वत: खुल जाते है. ।। ॐ नमः शिवाय ।।
 

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