Monday 13 August 2012


कुस्ती आणि volleyball 

मी जन्मल्यानंतर जवळ जवळ १३ ऑलिम्पिक गेम्स तरी झाले असतील. ह्या पूर्वी, मी हे खेळ कधीही इतक्या तन्मयतेने एकरूप होवून एकचित्ताने पाहिले नसतील. पण ह्या वेळेस मात्र हे गेम्स पाहताना मस्त वाटले. ह्या मागचे कारण हेही असू शकेल कि, माझे मन आणि डोकं, या दोन्हीही गोष्टी ह्या आवश्यक तितक्या  रिकाम्या आणि काळजी विरहित होत्या. गेम्समध्ये पदक जिंकल्यानंतर खेळाडूंच्या चेहऱ्यावरील भाव बघताना मजा आणि गूढ वाटायचे. काही जण रडायचे, काही जण हसायचे, तर काही खाली वाकून भूदेवीला नमस्कार करायचे, काही स्वताच्या देशाचा झेंडा घेवून मैदानावर पळत सुटायचे, काही आपल्या कुटुंबियांचे आभार मानायचे, काही आपल्या गुरूला खांद्यावर घेवून नाचायचे .....हे सर्व बघताना त्या त्या खेळाडूचा स्वभाव कसा पटकन कळून यायचा. काही अगदी नम्र, काही गर्विष्ट, काही घमेंडखोर, तर काही कृतज्ञ, तर काही कृतघ्न, काही मग्रूर तर काही भोळेभाबडे, काही देशप्रेमी तर काही संकुचित वृत्तीचे.....किती तऱ्हा तर्हाचे स्वभाव पाहायला मिळाले. ह्या सर्व खेळात मला आवडलेला खेळ म्हणजे "volleyball " ...ह्या खेळात लागणारी संघ भावना, माणसाने एकमेकांशी कसे सह्संयोगाने राहावे हे दाखवून देते. तुमच्यातली संघ भावना जितकी पक्की आणि जास्त  विश्वासावर अवलंबून आहे, तितके यश तुमच्या पदरात जास्त !!! दुसरा खेळ म्हणजे कुस्ती ....हा असा एकमेव खेळ आहे कि ज्याच्यात तुम्हाला जर जिंकायचे असेल तर अगोदर प्रतिस्पर्धीचा पाय पकडावा लागतो....म्हणजे प्रतिस्पर्धीला वाकून नमस्कार करावा लागतो आणि नंतरच त्याच्यावर मात करता येते. असे विवरण माझ्या जोडीदाराने जेंव्हा मला दिले, तेंव्हा मला खरोखरच माझ्या जोडीदाराचे आणि कुस्तीचे कौतुक करावेसे वाटले. आहे कि नाहीं मज्जा ......जीवनाच्या आखाड्यात आपल्याला जर जिंकायचे असेल तर, नेहमी विनम्रतेने वागून प्रतिस्पर्ध्यावर मात करण्यातच खरा विवेक आहे. उगीचच डोक्याला डोके लावून डोकेफोडी करण्यात काय फायदा आहे ?     

श्रावण मास के चलते, हम सभी श्री गणेशभक्तोंनो अभी तक नौ ज्योतिर्लिंगो का दर्शन किया । आज इस सालके श्रावण महिने का चौथा सोमवार है. और ईसी शुभ अवसरपर दर्शन करेंगे दसवां ज्योतिर्लिंग, श्री औंढा नागनाथ जी के. 

१०) औंढा नागनाथ (नागेश्वर) ज्योतिर्लिंग :- औंढा नागनाथ, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में स्थित हिंगोली जिले के औंढा नामक तालुके (तहसील) में स्थित है, तथा यहाँ पर एक अति प्राचीन तथा सुन्दर मंदिर में भगवान भोलेनाथ के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक (सन्दर्भ - द्वादश्ज्योतिर्लिन्ग्स्तोत्रं , कोटिरुद्रसंहिता, श्री शिव महापुराण अध्याय २९) ज्योतिर्लिंग “नागेशं दारुकावने” स्थित हैं, और इसी वजह से इस स्थान का महात्म्य प्राचीन धर्म ग्रंथों तथा पुराणों में भी मिलता है. प्राचिन काल में ईस जगह का नाम “दारुकावन” था. यंहा के ऋषिमुनीयोंको त्रस्त करनेवाला “दारुका” राक्षस का वध भगवान शिवजीने यहिं पर किया था. ईसके उपरांत भगवान शिवजी पवित्र लिंग स्वरुप में यंहा स्थित हुए. 

श्री नागनाथ मंदिर का शिल्प बड़ा अनोखा तथा विष्मयकारी है, मंदिर का निर्माण कार्य महाभारतकालीन माना जाता है. पत्थरों से बना यह विशाल मंदिर हेमाड़पंथी स्थापत्य कला में निर्मित है तथा करीब ६०००० वर्गफुट के क्षेत्र में फैला है.मंदिर की चारों दीवारें काफी मजबूती से बनाई गई हैं तथा इसके गलियारे भी बहुत विस्तृत हैं. सभा मंडप आठ खम्भों पर आधारित है तथा इसका आकार गोल है. यहाँ महादेव के सामने नंदी नहीं है तथा मुख्य मंदिर के सामने अन्य स्थान पर नंदिकेश्वर जी का मंदिर अलग से बनाया गया है. मुख्य मंदिर के चारों ओर बारह ज्योतिर्लिंगों के छोटे मंदिर भी बने हुए हैं. मंदिर की दीवारों पर पत्थरों को तराश कर की गई सुन्दर नक्काशी देखने लायक है, तथा दीवारों पर कई देवी देवताओं की मूर्तियाँ उकेरी गई हैं. शिलाखंडों से निर्मित इन मूर्तियों को देखने से मन प्रसन्न हो जाता है. मंदिर की दिवार के एक कोने पर बने एक शिल्प में भगवान् शिव रूठी हुई पार्वती जी को मना रहे हैं, यह द्रश्य देखकर लोग दांतों तले उँगलियाँ दबा लेते हैं, पत्थर से बनी मूर्तियों के चेहरों पर कलाकार ने जो भाव उत्पन्न किये हैं, लाजवाब हैं.

अन्य महत्वपूर्ण हिन्दू मंदिरों की तरह इस मंदिर पर भी धर्मांध औरंगजेब की कुद्रष्टि पड़ी तथा उसने मंदिर का उपरी आधा भाग ध्वस्त कर दिया था, लेकिन अचानक हज़ारों की संख्या में कहीं से भ्रमर (भौरें) आ गए तथा औरंगजेब के सैनिकों पर टूट पड़े, अंततः औरंगजेब को अपनी सेना समेत वापस लौटना पड़ा (यह और कुछ नहीं भगवान् शिवजीका चमत्कार ही था). बाद में इंदौर की महारानी पुण्यश्लोका देवी अहिल्याबाई होलकर जो की स्वयं शिव की बहुत बड़ी भक्त थी ने इस मंदिर का उपरी टुटा हुआ हिस्सा पुनर्निर्मित करवा कर मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया, अतः उनकी स्मृति में मंदिर परिसर में प्रवेश से पहले ही मातुश्री अहिल्या बाई होलकर की प्रतिमा विराजमान है. मंदिर का उपरी आधा भाग जो की औरंगजेब ने ध्वस्त कर दिया था तथा बाद में देवी अहिल्या बाई ने बनवाया, सफ़ेद रंग से पुताई किया हुआ है, तथा मंदिर का आधा निचला हिस्सा जो की प्राचीन मंदिर का वास्तविक हिस्सा है अभी भी काला ही है, यानी उस हिस्से पर पुताई नहीं की जाती.

श्री नागनाथ मंदिर का अनोखा गर्भगृह:
इस मंदिर की एक विशेषता है की यहाँ गर्भ गृह सभा मंडप के सामानांतर स्थित न होकर, सभा मंडप के निचे स्थित गुफा नुमा तलघर में है, इस तरह का मंदिर इससे पहले कभी नहीं देखा, सभा मंडप के एक कोने में चौकोर आकार का एक द्वार है तथा इस द्वार से सीढियाँ लगी हैं जो की निचे तलघर में स्थित गर्भगृह तक जाती हैं, रास्ता भी इतना छोटा है की एक बार में एक ही व्यक्ति तलघर में जा या आ सकता है. अन्दर गर्भ गृह भी बहुत छोटा है तथा एकसाथ केवल आठ या दस लोग ही पूजा कर सकते हैं, उंचाई भी इतनी कम है की व्यक्ति खड़ा नहीं हो सकता सिर्फ झुक कर या बैठ कर ही रहा जा सकता है, जबकि मंदिर बहुत विशाल है, अन्दर गर्भगृह में मध्यम आकार का ज्योतिर्लिंग स्थापित है, जो की चांदी के आवरण से ढंका रहता है तथा समय समय पर अभिषेक के लिए आवरण को हटाया जाता है. यहाँ पर गर्भगृह में भक्तों को सीधे ज्योतिर्लिंग पर पूजन तथा अभिषेक की अनुमति है. यह ज्योतिर्लिंग रेत से निर्मित है, भक्त गण अभिषेक के दौरान अपने हाथों से रेत को महसूस कर सकते है. गर्भगृह के इस अद्भुत निर्माण, तथा बहुत संकरा होने तथा जगह बहुत कम होने की वजह से कई बार वृद्ध भक्तों तथा बच्चों के लिए गर्भगृह में प्रवेश जोखिम भरा हो सकता है. फर्श हर समय गीली होने तथा प्रकाश की कमी की वजह से फिसलने का भी डर होता है,  लेकिन यह भी सच है की भगवान् के दर्शन मुश्किलों तथा जोखिमों से गुजरने के बाद ही होते हैं. ।। ॐ नमः शिवाय ।।

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